
साइकिल की सवारी छोड़ी तो आदमी को बीमारियों ने घेरा, दुपहिया या चौपाया वाहन पकड़ा, प्रदूषण को बढ़ाया
- पेट्रोल – डीजल के दामों को भी आसमान पहुंचाया
- एक बार फिर लौटो तो सही साइकिल की तरफ
अभिषेक आचार्य
RNE Special.
आज विश्व साइकिल दिवस है। वो साइकिल जो हर घर की आवश्यक वस्तु थी, उसे अब एक दिन उत्सव के रूप में याद किया जा रहा है। पहले तो हर घर साइकिल को खरीद अपने को धनवान समझता था, क्योंकि उसके पास अपनी सवारी थी। राजा महाराजाओं की हाथी की सवारी से कम नहीं थी साइकिल की सवारी।
न चलाने के लिए पेट्रोल – डीजल की जरूरत। वाहन पर भी अधिक खर्च नहीं। बहुत ही सादी और आराम की सवारी है साइकिल। साइकिल में ज्यादा टूट फुट भी नहीं होती। तब मेंटिनेंस में भी अधिक धन नहीं लगता। व्यक्ति खुद छोटी कमियां दुरस्त कर लेता। बीकानेर जैसे संस्कारी शहर में तो शादी होने पर साइकिल देना शान की बात समझी जाती थी।
वक्त बदल गया, सब छूट गया:
पर धीरे धीरे समय बदल गया। लोगों को जीवन की रफ्तार को बढ़ाने की ललक जाग गयी। पाश्चात्य संस्कृति ने भाग दौड़ को जीवन का हिस्सा बना दिया। समय बचाने के लिए स्कूटर, बाइक आदि से बाजार भर दिया।
बाजार की ये टेक्टिस थी लाभ कमाने की। सहजता से लोन उपलब्ध कराना शुरु कर दिया। लोगों ने भी धड़ाधड़ दुपहिया वाहन खरीदने शुरू कर दिए, भले ही लोन पर। इसके कारण साइकिल पीछे छूट गई। धीरे धीरे देखादेखी में लोग दुपहिया लाते गये और साइकिल को छोड़ते गये। ये दौड़ अब बीमारी बन गई। वहीं दिखावे ने भी साइकिल को घर में धकेल दिया।
पहले ये व्यवसाय भी थी:
साइकिल व्यवसाय का भी एक बड़ा जरिया थी। हर मोहल्ले में किराए पर साइकिल देने की 1- 2 दुकानें जरूर थी। जिससे उनका घर चलता और लोगों का काम निकलता। देखते देखते ये सारी दुकानें बंद हो गई।
पेट्रोल डीजल पर निर्भरता बढ़ी:
अब लोगों ने दुपहिया वाहन खरीद लिए तो पेट्रोल – डीजल पर उनकी निर्भरता बढ गई। ये भारत के उत्पाद तो है नहीं। इनको आयात करना पड़ता है। इनके दाम भी लगातार बढ़ते गये और महंगाई भी बढ़ती गई। क्योंकि माल लाने ले जाने के लिए भी इनकी आवश्यकता थी। आज पेट्रोल व डीजल 100 रुपये पार है और इससे हर चीज महंगी हुई है।
स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव:
साइकिल चलाने से पूरे शरीर की वर्जिस होती है, वो छूट गयी तो लोगों में बीमारियां बढ़ गई। शरीर अस्वस्थ रहने लगा। इससे बड़ा नुकसान तो क्या होगा।
ठीक इसी तरह अब पेट्रोल डीजल से चलने वाले वाहनों की भरमार हो गई तो वातावरण भी प्रदूषित हो गया। उससे नई नई बीमारियों ने जन्म ले लिया। बहुत नुकसान हुआ है साइकिल को छोड़ने का।
जागरूकता के 2 उदाहरण:
पहला:- बीकानेर के सांसद व देश के वर्तमान कानून मंत्री अर्जुनराम मेघवाल इकलौते ऐसे सांसद है जो नियमित रूप से साइकिल भी चलाते है। सांसद व मंत्री बनने के बाद भी वे अनेकों बार साइकिल की सवारी करते है। साइकिल दिवस पर अपने संदेश में उन्होंने कहा कि आइए इस अवसर पर आज परिवहन के इस सादे, उचित, विश्वसनीय, स्वछ और पर्यावरण अनुकूल सतत साधन को बढ़ावा देने के लिए संकल्प लें।
दूसरा :- देश के वरिष्ठ साहित्यकार, चिंतक डॉ नंदकिशोर आचार्य ने कभी भी दुपहिया वाहन नहीं चलाया। वे सदा साइकिल लेकर ही चलते थे। उस कारण आज भी वे फिट है।
ये दोनों उदाहरण नई पीढ़ी के लिए एक बड़ी सीख बनने चाहिये।